अंडे में नहीं झलकता जनता का दर्द, (मनोज सिंह की कलम से)

अब झंडे में नहीं झलकता जनता का दर्द--- हजारों पंजीकृत राजनीतिक दल , और जितने तरह के राजनीतिक दल उतने तरह के लाल, पीले, नीले,हरे एक रंगी,द्विरंगी और बहुरंगी झंडे पर किसी झंडे में , न तो जनता का दर्द दिखाई देता है, न आम जनमानस की आम समस्याएं। आज हर झंडे बबहुराष्ट्रीय कम्पनियो के विज्ञापन की तरह हो गये हैं, आज झंडे में झलकने लगी हैं जातियों कुल कुनबे खानदान और मजहब की पहचान, अब झंडों से नहीं आती सिद्धांत विचार और विकास की खुशबू , अपनी जाति कुल कुनबे मजहब में जरूर जोश जगाते हैं झंडे , पर सम्पूर्ण समाज में बदनुमा बदबूॅदार और बदरंग होते जा रहे हैं। हर झंडे के बगल में चमकदार कुर्ता पैजामा पहने एक रौबदार नेता जिसकी कद-काठी का ख्याल रखते हुए झंडे की डिजाइनिंग पोस्टर की पोस्चरिंग की जाती है और नेता का रुतबा ऊंचा रहे उसी हिसाब-किताब से होर्डिग की हैंडलिंग की जाती हैं। इन सभी झंडो में जनता का झंडा कौन सा है किसी को पता ही नहीं चलता हैं। जब जनता अपने विवेक से अपना झंडा बुलंद करने लगेगी ...