हर गहरे संकट में याद आता है चाचा नेहरू का नेहरू मॉडल ---(मनोज कुमार सिंह की कलम से)

हर गहरे संकट में याद आता है  "चाचा नेहरू" का नेहरू माॅडल ---

 तरक्की और विकास के लिए विज्ञान,
तकनीकी और वैज्ञानिक और तार्किक  दृष्टिकोण के महत्व को बखूबी समझने वाले और सच्चे मन मस्तिष्क से मानने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अंग्रेजों की निर्मम ,निर्लज्ज और मानवता को शर्मसार करने वाली  लूट-खसोट से विभाजित, विश्रृखंलित और जर्जरित हो चुके भारत के पुनर्निर्माण , विकास और बंटवारे के जख्म से घायल भारतीयता के दर्द पर मरहम लगाने के लिए कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। उनकी यह पवित्र भावना और ईमानदार फौलादी आंकाक्षा प्रधानमन्त्री की हैसियत से लाल किले की प्राचीर से किये गए पहले उद्बबोधन में साफ-साफ झलकती है। लालकिले की प्राचीर से पहली बार उद्बोधन करते हुए उन्होंने कहा था कि-"हर आंख से हर आंसू का हर कतरा पोंछा जायेगा "। लोकदर्द और लोकजीवन की समस्याओं के प्रति गहरी और गम्भीर संवेदना रखने वाले नेहरू ने गरीबी और गुरूबत में जीवन गुजर बसर करने वालों के कई नीतियां बनाई और  निर्णय लिए।भारत के प्रथम प्रधानमंत्री को आधी रात के स्याह अंधेरे ऐसी स्वाधीनता मिली जिसको रोशनगर्द सुबहों के उजाले का दूर दूर तक कोई अता पता नहीं था। स्वाधीनता उपरांत भारतीय बसुन्धरा पर चहुंओर भूखमरी गरीबी कुपोषण अशिक्षा गंदगी पसरी पडी थी और  अनगिनत समस्याएं सुरसा की तरह  मुॅह बाए खडी थी। आम बोलचाल और भाषण में साहित्यिक शैली लहजे  वाले मूलतः विज्ञान के विद्यार्थी रहे पंडित जवाहरलाल नेहरू ने वैज्ञानिक चेतना के साथ अद्वितीय दूरदर्शिता का परिचय देते हुए भारत के पुनर्निर्माण और विकास की यात्रा आरम्भ की। स्वाधीनता उपरांत देश के पुनर्निर्माण और विकास के लिए जिन-जिन संस्थाओं को स्थापित किया और जिन-जिन योजनाओं और परियोजनाओं को संचालित और क्रियान्वित किया उनकी गुणवत्ता, महत्ता और भूमिका इस दौर में भी बरकरार है । अपने कुल मगज सत्रहवर्षीय शासन काल में विश्व के सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालय कैम्ब्रिज से पढे लिखे इस होनहार विद्यार्थी ने एक भूखे नंगे अपाहिज देश को हर क्षेत्र में मजबूती से अपने पैरों पर खडा होने की ताकत दी और वैश्विक रंगमंच पर भारत को बहुआयामी प्रतिस्पर्धा के लायक बना दिया और फिर से यह देश तरक्की और विकास की राह पर सरपट दौडने लगा। 
नेहरू ने देश के सर्वांगीण विकास के लिए विविध क्षेत्र में विविध संस्थानो और संस्थाओं को स्थापित किया जो भारत के पुनर्निर्माण और विकास की दृष्टि से सभी संस्थान और संस्थाएं मील का पत्थर साबित हुई। भारत सदियों से कृषि प्रधान देश है इसलिए सर्वप्रथम कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता लाकर भारतीय अर्थव्यवस्था में स्फूर्ति लाई जा सकती थी। इस सच्चाई को ध्यान में रखते हुए नेहरू द्वारा स्थापित भाॅखडा नांगल बाॅध ( भाॅखडा नांगल बाॅध सहित अन्य बांधों को पंडित जवाहरलाल नेहरू ने आधुनिक भारत के मंदिर कहा था ) सहित सभी नदी घाटी परियोजनाएं कृषि क्षेत्र में
आत्मनिर्भरता लाने और औद्योगिक क्षेत्र के विकास को गति देने के लिए आवश्यक उर्जा मुहैया कराने की दृष्टि से वरदान साबित हुई।अग्रेंजो ने भोले-भाले भारतीय किसानों से बेरहमी से लगान वसूलने के लिए और  अपनी लूट खसोट को सुसंगठित और सुव्यवस्थित करने के लिए उत्तर भारत में जमींदारी, पंजाब और उसके आस-पास के क्षेत्रों में महालवाडी और दक्षिण भारत में रैयतवाडी जैसी शोषणकारी व्यवस्थाओं को जन्म दिया। अंग्रेजों ने उपरोक्त तीनों व्यवस्थाओं द्वारा न केवल भारतीय किसानों का निर्ममता और निर्लज्जता से शोषण किया बल्कि भारत की खेती किसानी को भी बुरी तरह  चौपट कर दिया और दुनिया के सबसे विशाल और खूबसूरत नजारे वाले हरे-भरे मैदानों को उसर बंजर में तब्दील हो गया । नेहरू की महत्वाकांक्षी योजनाओं में बहुद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं और पहली पंचवर्षीय योजना में कृषि और सिंचाई को केन्द्रीय महत्व देने के फलस्वरूप इन मैदानों में फिर से हरियाली वापस आई। नदी घाटी परियोजनाओं से न केवल बाढ जैसी प्राकृतिक आपदा से निजात दिलाने में सफलता मिली बल्कि वर्षो से बंजर और वीरान हो चुकी भारतीय बसुन्धरा संतरंगी परिधानों में फिर से सजी संवरी नजर आने लगी और भारतीय जनमानस के रूखे सूखे ह्रदयों को सावन बसंत हेमंत और शिशिर का फिर से  एहसास होने लगा।
अंग्रेजों ने अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं की प्रतिपूर्ति में न केवल भारतीय कृषि को चौपट किया बल्कि हुनरमंद भारतीय हाथों की दस्तकारी और कारीगरी को भी बुरी तरह बेकार और बर्बाद कर दिया। इसलिए भारतीय हाथों की दस्तकारी  कारीगरी और कौशल को वापस लाने के लिए उच्च स्तरीय तकनीकी और वैज्ञानिक शोध संस्थानों की महती आवश्यकता थी। भारतीय युवाओं में तकनीकी दक्षता और कुशलता लाने की दिशा में भारतीय प्रौद्यौगिकी संस्थानो ( I I T ) की स्थापना की संकल्पना और खडगपुर में पहला भारतीय प्रौद्यौगिकी संस्थान स्थापित कर इसका शुभारंभ करना नेहरू की दूर- दृष्टि का ही नतीजा है। आर्यभट्ट वराहमिहिर चरक सुश्रुत नागार्जुन और श्रीधराचार्य के देश को चिकित्सा विज्ञान और अंतरिक्ष के क्षेत्र में फिर से वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (I S R O ) ,भाभा परमाणु अनुसंधान संस्थान,अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान ( A I M S ) उच्च स्तरीय अखिल भारतीय प्रबन्धन संस्थान जैसे देश की यशकिर्ति को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठित करने वाले दर्जनों संस्थाओं और संस्थाओं को स्थापित किया जो कालांतर में भारत के लिए मील का पत्थर साबित हुये। 
एशिया के सबसे धनी वकील के बेटे तथा ब्रिटिश साम्राज्य के राजकुमार के समान और समानांतर सुख सुविधाओं में पले बढे जहाहर लाल नेहरू ने राजनीति में पदार्पण करते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा एक सच्चे सत्याग्रही के लिए निर्धारित वेश-भूषा और निर्देशित सादगी और सज्जनताञ को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया था। अपने दौर की वैश्विक राजनीति की बेहतर समझदारी रखने वाले पंडित जवाहरलाल नेहरू मानव जीवन के लिए स्वतंत्रता और राष्ट्रीय जीवन के लिए स्वाधीनता का महत्व और मूल्य बखूबी समझते थे। इसलिए भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अनगिनत यातनाऐ झेली,जेल गए,लाठियां खाई और अपना सर्वस्व न्योछावर करने को सर्वदा तत्पर रहें। स्वाधीनता के आवश्यक निर्भीकता और सर्वस्व न्योछावर करने की उत्कट अभिलाषा ने नेहरू को स्वाधीनता संग्राम के नायकों की अग्रिम कतार में खडा कर दिया। स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व की बुनियाद पर लडी गई फ्रांसीसी क्रांति से पंडित जवाहरलाल नेहरू गहरे रूप से प्रभावित थे। एक स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व बुनियादी तत्व होते हैं। इसलिए नेहरू ने सचेत हृदय से स्वतंत्रता समानता और बंधुत्व की बुनियाद पर देश के अंदर स्वस्थ्य लोकतंत्रीक परम्पराओं और परिपाटियो का विकास करते रहे । नेहरू स्वभावतः लोकतांत्रिक थे और लोकतंत्रिक सज्जनता एवं लोकतांत्रिक शिष्टाचार उनके अन्दर कूट-कूट कर भरा था । इसलिए पूर्ण बहुमत की सरकार होने के बावजूद अपने पहले मंत्रिमंडल में श्यामा प्रसाद मुखर्जी और डॉ भीम राव अंबेडकर जैसे प्रखर आलोचकों को शामिल किया।      
आज सारा विश्व कोरोना महामारी के संकट से जूझ रहा है। इसके कारण आम आदमी का जीवन और जिविका गहरे संकट में है। महामारियों का इलाज झाड-फूॅक और जादू टोना-टोटका नहीं होता है इसका अतिंम इलाज टीकाकरण होता हैं। आधुनिक वैज्ञानिक और तार्किक चेतना से लबरेज़ जवाहरलाल नेहरू उपरोक्त सच्चाई से पूरी तरह वाकिफ थे। महामारियों के प्रकोप से जद्दोजहद करते रहने का इतिहास बहुत पुराना है। इसलिए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने महामारियों से लोगों का जीवन बचाने के लिए स्वाधीनता उपरांत ही प्रयास प्रारंभ कर दिए वर्ष 1948 में चेन्नई में वैक्सीन यूनिट और पुणे में राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान स्थापित कर महामारियों से जीवन बचाने का श्लाघनीय प्रयास किया। उनके इसी सोच का नतीजा है कि भारत वैक्सीन का विश्व में सबसे बडा निर्माता और निर्यातक हैं तथा चेचक खसरा और पोलियो जैसी बिमारियों से मुक्ति पा चुका है। 
अंततः देश के पुनर्निर्माण और विकास के पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी बौद्धिक और तार्किक से जो साँचा ढाँचा और खाँचा खडा किया उसको देश बौद्धिक वर्ग और राजनीतिक विश्लेषको ने "नेहरू माॅडल " का नाम दिया। जब जब यह देश किसी भी तरह गहरे संकट में उलझता फंसता हैं तो लोग नेहरू माॅडल को याद करते हैं। जितनी गम्भीरता के साथ हम नेहरू माॅडल को जानने समझने का प्रयास करते हैं उतना ही हम देश की बहुविवीध समस्याओं के समाधान की तरह अग्रसर होते हैं। अभी भी इस देश में नेहरू माॅडल का कोई विकल्प नहीं है । इस देश में बच्चों और युवाओं में "चाचा नेहरू " के नाम से लोकप्रिय पंडित जवाहरलाल नेहरू का बहुचर्चित नेहरू माॅडल ही इस देश के विकास रास्ता और आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं का समाधान हैं। इसलिए देश पहले प्रधानमंत्री द्वारा विकास के लिए बोयाॅ रोपा गया माॅडल आज भी देश के लिए निर्विकल्प है। नेहरू की चाहे जितनी आलोचनाऐं की जाये या अधकचरे ज्ञान के कारण पानी पी पी कर गालियां बकी जाए  नेहरू का माॅडल आज भी इस देश के विकास  को गति और स्फूर्ति प्रदान कर रहा है तथा नेहरू का समाजवादी धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्रिक व्यक्तित्व कृतित्व और चरित्र हर सच्चे लोकतांत्रिक राजनीति करने वाले हृदयो के लिए रोल मॉडल बना रहेगा। भारत के संसदीय राजनीति का अगर गम्भीरता से अवलोकन किया जाए तो पता चलता है कि प्रधानमंत्री पद बैठने वाला हर व्यक्ति वैश्विक रंगमंच पर नेहरू बनने का प्रयास करता है। 
  

मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता 
बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह ।

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