बरसों हुए सुकून से सोया नहीं गया ,हंसना नहीं हुआ कभी रोया नहीं गया ,मैं बीज बदनसीब हूं गोदाम में पड़ा ,खाया नहीं गया मुझे बोया नहीं गया।
*बरसों हुए सुकून से सोया नहीं गया*!
*हँसना नहीं हुआ कभी रोया नहीं गया*!
*हँसना नहीं हुआ कभी रोया नहीं गया*!
*मैं बीज बदनसीब हूँ , गोदाम में पड़ा*!
*खाया नहीं गया मुझे बोया नहीं गया*,??
समाज का सबसे उपेक्षित शोषित कुपोषीत समाज आज भी अपनी गरीबी दीन हीन दशा के साथ दुर्दशा ग्रस्त जीवन जी रहा है।हर रोज इस भयंकर महंगाई मे खून का आंसू पी रहा है। देश में सियासत की खेती इन्हीं के नाम पर अगेती फसल बनकर आजादी के बाद से आज तक लगातार तैयार हो रही है।और इसी फार्मूले पर लगातार बन बिगड़ रही सरकार है।सारे सियासतदारों का गरीब सबसे उपयुक्त हथियार है। आज तक साथ दशक गुजर गया गरीबी तो गयी नहीं तमाम गरीब करोना की महामारी में सरकारी मेहमान बनकर लावारिश दफन हो गये। देश की संसद से लेकर बिधान सभा के लिये सबसे उपयुक्त सवाल गरीबी शब्द से बुना जाल है।देश का सारा बजट अमीर गरीब के बीच खाई बनकर हर साल गहरा होता जा रहा है।गरीब गरीबी एक ऐसा शब्द है जिसके सहारे लोकतन्त्र कि उफनती नदी को आसानी से ढपोर शंखी वादा की नाव पर सवार होकर पार किया जा सकता है।और इस मूल मंत्र का गूढ़ तन्त्र जिस सियासतदार ने समझ लिया वो अपनी सियासी नसीब को बार बार आजमा लिया सब कुछ पा लिया लेकिन बदहाल गरीब जहा पहले खडा था आज भी वहीं खड़ा है।न गरीबी मिटी न गरीब हुआ बड़ा है। बिडम्बना के बाजार में सम्भावना की बैसाखी के सहारे
सद्भावना को साथ लिये अनाथ बना गरीब अपने नसीब पर भरोसा करता है। मेहनत के बल पर आत्मबल के सहारे जीवन का हर पल सिसक सिसक कर काट लेता है। सरकार किसी की भी बनी सभी ने गरीब असहाय लाचार के नाम पर सरकारी योजनाओं को बनाया तो गया मगर धरातल पर आने के पहले ही भ्रष्टाचारीयों का निवाला बन गया। गरीबी भूख बेरोजगारी, के कारण जो लोगों के बीच सरकार के खिलाफ अवधारण बन रहा है वह साधारण नहीं रह गया है बल्कि हर देश वासी उसका निस्तारण चाह रहा है।मगर इस देश का सियासतदार जानता है जिस दिन गरीब गरीबी शब्द सियासत की डिक्सेनरी से खतम हो जायेगा उस दिन राजनिति के पंडितों के लिये दिल्ली की राह आसान नहीं रह जायेगी। देश के परिवेश में रोटी कपडा मकान सम्विधान के साथ ही वजूद में आ गया!संम्विधान के तरह ही सियासतदारो के कुटील चाल का
शिकार बनकर अपने अधिकार को तलाश रहा है।हालात हमेशा आम आदमी के अधिकारों के साथ ही झंझावात पैदा करता है। महंगाई की मार से बेहाल दिहाड़ी मजदूर अ सहाय गरीब आम आदमी मजबूर हो गया है।रोजी रोजगार के अभाव में बेकार हो गया हर लम्हा गमगीन है।हर तरफ उदासी है निराशा है वक्त बदलने का की न उम्मिद है न आशा है। लोकतंत्र के सागर का सारा सीयासी पानी ही जब जहरीला हो गया!ऐसे में हर आदमी का दम तोड रही आभिलाषा है। समय करीब है फिर निशाने पर गरीब है! सियासी मदारी गांव गांव अपना करतब दिखाने निकल चुके हैं।कुछ दिनों तक पापी पेट का सवाल है लोगों को बतायेगे घडीयालू आंसू गिरा कर कुटिल चाल के तहत रहस्यमयी मुस्कान समेटे झोली फैलायेगे ! दे द राम, दिया द राम, देबे वाला दाता राम का नारा लगायेंगे। सावधान हो जाईये।समय मुस्कराते हुये नव बिहान में परिवर्तन का इम्तिहान लेने वाला है। परीक्षा की समीक्षा शुरू है फैसला आप के हाथ है। जैसा बोलेंगे वैसा काटेंगे।
जयहिंद🙏🏻🙏🏻
जगदीश सिंह
7860503460
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