भारत में सब कुछ है लेकिन संपूर्ण स्वास्थ्य का अधिकार कानून में अभी भी अस्तित्व में नहीं है
भारतवर्ष में शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार,अभिव्यक्ति की आजादी का कानून के साथ मौलिक अधिकार तो है लेकिन संपूर्ण स्वास्थ्य का अधिकार कानून अभी भी अस्तित्व में नहीं है या क्रियान्वित नहीं है।अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी हो रही है लोगों का इलाज कर लें और जिंदगी बचाने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य नेटवर्क चाहिए जो अपने देश में पूरी तरह से जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है जबकि किसी भी देश के विकास के महत्वपूर्ण मानकों में एक स्वास्थ्य भी है।उत्तम स्वास्थ्य वह अनमोल रत्न है जिसका मूल्य तब ज्ञात होता है जब वह खो जाता है विश्व स्वास्थ्य संगठन के आधार पर देखा जाए तो स्वास्थ्य केवल रोग या दुर्बलता की अनुपस्थिति ही नहीं बल्कि स्वास्थ्य एक पूर्व मानसिक,सामाजिक, शारीरिक और अध्यात्मिक खुशहाली की स्थिति है भारत में स्वास्थ्य पर सरकारी खर्च बहुत से गरीब देशों जैसे बांग्लादेश,नेपाल और घाना से भी कम है डॉक्टर या अस्पताल बनाम मरीज का औसत विश्व स्वास्थ संगठन के पैमाने से भी बहुत नीचे है अपने देश में निजी अस्पताल बेहद महंगे हैं खास तौर पर दवाओं और जांच की कीमत के नाम पर लोगों को एक बहुत बड़ा बिल सर दर्द और गरीबी पकड़ाते हैं यह सर्वविदित है कि हमारे देश में स्वास्थ्य ढांचा कैसा है सरकार लोगों के स्वास्थ्य के प्रति कितना गंभीर है या रही हैं इसकी पूरी कलई कोविड-19 महामारी ने खोल दिया और साफ तौर पर दिखाई देने लगा अस्पताल लूट के अड्डे बन गए हैं।महंगे इलाज पर लोगों का आर्थिक शोषण और मानसिक उत्पीड़न कर रहे हैं ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था को देखते हुए कहीं आपको लगता है कि स्वास्थ्य सेवा कहीं भी सरकार की प्राथमिकताओं में है।हमारे देश के मनमाने रवैए के चलते लगभग हर किसी को दो-चार होना पड़ता है और नाजुक मौकों पर होने वाली लापरवाही से लोगों की जान तक चली जाती है हमारे संविधान ने तो सम्मान के साथ जीने का अधिकार तो प्रदान कर दिया लेकिन सम्मान के साथ स्वास्थ्य का अधिकार मिलना अभी बाकी है जिससे लोगों का जल्द से जल्द समय के अनुकूल समुचित इलाज हो सके भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत देश के प्रत्येक नागरिक को जीने का अधिकार है जीने के अधिकार में स्वास्थ्य का अधिकार वर्णित है लेकिन भारत के संविधान के अंदर कहीं भी स्वास्थ्य के अधिकार (राइट टू हेल्थ)को मौलिक अधिकार के रूप में चिन्हित नहीं किया गया है *सभी व्यक्तियों को समान रूप से जीवन जीने का अधिकार दिया गया है और किसी व्यक्ति पर व्यक्तित्व किसी प्रकार की जोर जबरदस्ती ना की जाए ऐसे भावना है अकेला अनुच्छेद ही सभी मौलिक अधिकारों को समाहित किए हैं* हर मरीज को बिना किसी भेदभाव के स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी है। 2015 में स्वास्थ्य का अधिकार कानून को लेकर एक मसौदा तैयार किया गया था लेकिन 2017 में बने राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति में इसका कोई जिक्र नहीं किया गया। विश्व के लगभग 100 देशों के संविधान में स्वास्थ्य का अधिकार कानून है इस मामले में भारत कई विकासशील देशों से भी पीछे है विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने संविधान में कहा है कि स्वास्थ्य के उच्चतम प्राप्त मानक का आनंद जाति,धर्म, राजनीतिक विश्वास,आर्थिक या सामाजिक स्थिति के भेदभाव के बिना हर मनुष्य के मौलिक अधिकारों में से एक है स्वास्थ्य का अधिकार का अर्थ है कि प्रत्येक मनुष्य की उस स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच होनी चाहिए जिनकी उन्हें आवश्यकता है।कोरोना काल में स्वास्थ्य के ऊपर खतरा कई गुना बढ़ा है हमें सरकार से पहले भी और आज भी सरकार से पूछना चाहिए कि जब हम भारतीय नागरिक टैक्स भरते हैं भरने में कोई कोताही नहीं करते हैं हर बड़े हुए टैक्स को खुशी मन से झेलते हैं हमारी बचत पूरी तरह से सरकार के हवाले है तो स्वास्थ्य पर खर्च और महंगे इलाज के कारण भारत में हर साल 4.6% लोग गरीब क्यों हो जाते हैं? क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं है कि बीमार लोगों के स्वास्थ्य को बचाए उनको स्वस्थ और सम्मानित जीवन जीने का अधिकार दे तो क्या समय अब यह नहीं आ गया है कि सभी लोग मिलकर के स्वास्थ्य के अधिकार की मांग को बलवती करें जिससे सरकार संविधान में व्यवस्था करें और स्वस्थ जीवन जीने का अधिकार दे और आम आदमी स्वस्थ हो।स्वस्थ मनुष्य में ही स्वस्थ विचार का जागरण हो जो देश की तरक्की और विकास के लिए सहायक हो।
रामाश्रय यादव जिलाध्यक्ष राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद जनपद मऊ।
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