राजनीति में बढ़ती गिरगिटयां प्रवृत्ति स्वास्थ्य लोकतंत्र के लिए घातक है।

भारतीय राजनीति में बढती गिरगिटियाॅ प्रवृत्ति स्वस्थ्य लोकतंत्र के लिए घातक---

यह सर्वविदित है कि-विभिषण ने युगों-युगों के महानायक मर्यादा पुरुषोत्तम राम का साथ दिया था परन्तु आज भी विभिषण को भारतीय जनमानस में कुलद्रोही, कुलनाशक और लंकाभेदी जैसी उपमाओं से विभूषित और विश्लेषित किया जाता हैं । भारतीय उपमहाद्वीप में विभिषण, जयचन्द, मीर जाफर भितरघातियों के रूप में वर्णित और ऐतिहासिक दृष्टि से कलंकित किए जाते हैं। इसके विपरीत अधर्म ,असत्य ,अन्याय और  अत्याचार के पक्ष में खड़े अपने मित्र दुर्योधन के हर दुष्कर्म और दुष्कृत्य के संलग्न होने के बाबजूद अंग राज कर्ण  को भारतीय जनमानस में आदर और  श्रद्धा के साथ याद किया जाता हैं। 
लगभग हर चुनावी मौसम में दलबदलू नेताओं की बाॅढ आ जाती हैं । येन-केन प्रकारेण विधानसभा, लोकसभा और अन्य सदनों में पहुंचने के लिए बेताब और बेचैन नेताओं द्वारा दूसरे दल से टिकट मिलने के आश्वासन पर रातों रात आस्था निष्ठा बदल दी जाती हैं। 
न्यूनतम लोकतांत्रिक मूल्यों मर्यादाओ और मान्यताओं को ताक पर रख कर चुनावी मौसम में दलबदलू नेताओं द्वारा माननीय बनने के चक्कर में  जिस तरह आस्था निष्ठा बदली जाती है  उससे रंग बदलने के लिए कुख्यात गिरगिट भी बहुत पीछे छूट जाते है। जीत की सम्भावना देखकर चुनावी मौसम में आस्था निष्ठा बदलने को बडी ढिठाई से सफेदपोश तरीके से   दलबदलू नेताओं द्वारा "हृदय परिवर्तन "का नाम दिया जाता हैं । गिरगिटों से भी तेज और अधिक रंग बदलने वाले  नेताओं द्वारा राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा परिकल्पित "हृदय परिवर्तन "जैसी पवित्र धारणा को बार-बार दागदार किया जा रहा है । दल-बदल की संस्कृति सर्वप्रथम महान जनता के उस पवित्र राजनीतिक विश्वास के साथ विश्वासघात है जो अपनी सैद्धांतिक वैचारिक प्रतिबद्धता आस्था निष्ठा और विश्वास के तहत अपना बेशकीमती वोट देकर नेताओं को संसद और विधानसभा की डेहरी तक पहुँचाती रहती हैं । जिस देश में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम,योगीराज भगवान श्रीकृष्ण,राजा हरिश्चंद्र, चाणक्य, महात्मा गाँधी और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसे अनगिनत महापुरुषों ने राजनीति में मूल्यों मर्यादाओं और सिद्धांतों के लिए  अनगिनत यातनाए सही और अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया ,उस देश की वर्तमान राजनीति पूरी तरह वैचारिक नैतिक पतन की तरफ बुलेट ट्रेन की रफ्तार से अग्रसर हैं और सिद्धांतहीनता की पराकाष्ठा पर पहुंच चुकी है । न्यूनतम जनतांत्रिक मूल्यों मर्यादाओं और परम्पराओं को पोटरी में बांध कर किसी काली कोठरी की धूल फांकती अलमारी में बन्द कर  रख दिया गया है। यह गिरावट नेताओं और आम जनता दोनों  के स्तर पर  देखा जा सकता है । हमारा महान स्वाधीनता संग्राम उच्च नैतिक मूल्यों आदर्शों और मान्यताओं को स्थापित करने और कुछ निश्चित सिद्धांतों और विचारों की बुनियाद पर लड़ा गया । सिद्धांतों विचारों के प्रति प्रतिबद्ध स्वाधीनता संग्राम सेनानियों ने आजाद भारत की कल्पना करते हुए यह कल्पना किया था कि- यह देश उच्च नैतिक  मूल्यों आदर्शों से परिपूर्ण राजनीति द्वारा संचालित होगा । परंतु जैसे जैसे हम शिक्षित आधुनिक और विकसित होते गए वैसे वैसे मूल्यों मर्यादाओं सिद्धांतों विचारों की राजनीति से दूर होते चले गए। जब हम पिछडे थे ,भूखे -नंगे थे , अशिक्षित थे और गवाँर कहलाते थे , तो हमने बाल गंगाधर तिलक,गोपाल कृष्ण गोखले डॉ राजेंद्र प्रसाद डॉ बी आर अम्बेडकर और लाल बहादुर शास्त्री को अपना नेता माना, आज हम जब शिक्षित समझदार कहलाते हैं तो हमारे समाज  के सबसे बडे अपराधी सबसे बडे भ्रष्टाचारी सबसे बडे जातिवादी हमारे नेता हो गए। इन्ही अपराधियों बाहुबलियो भ्रस्टाचारियों और धन्नासेठों ने भारतीय राजनीति में सत्ता का संरक्षण पाने की मंशा से दलबदल को प्रश्रय दिया। सरकारों के बहुमत परिक्षण(Flor teast) और राज्य सभा और विधान परिषद का चुनाव  दल-बदल के माहिर खिलाडियों के लिए रातों रात करोड़पति बनने का सुनहरा अवसर होता हैं इस अवसर को दलबदलू नेता किसी कीमत पर गँवाना नहीं चाहते हैं। निर्वाचित सांसदो और विधायकों में पाई जाने वाली दल-बदल की प्रवृत्ति उनकी अकर्मण्यता, कर्महीनता निकम्मे और निठल्ले पन का परिचायक होती है । पूरी दुनिया को आदर्शों मूल्यों मर्यादाओं सिद्धांतों और नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले देश में दल-बदल की संस्कृति भारतीय राजनीति में कोढ बन चुकी हैं। स्वस्थ्य और और स्वस्थ्य संसदीय लोकतंत्र के लिए दल-बदल की संस्कृति को पूरी तरह से ध्वस्त करना आवश्यक है। 

मनोज कुमार सिंह प्रवक्ता बापू स्मारक इंटर कॉलेज दरगाह मऊ।

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