अपर्णा यादव ने क्यों थामा बीजेपी का दामन जानिए पूरी कहानी

*अपर्णा की बगावत के पीछे एक लंबी कहानी है !* 

-जब दिल्ली में अपर्णा यादव बीजेपी में शामिल हुई तो उस वक्त बहुत से लोगों ने ये सोचा होगा कि ये एक सामान्य दल बदल है... बेटा किसी पार्टी में... बहू किसी पार्टी में.... ससुर किसी पार्टी में... ये तो भारत की राजनीति की परंपरा रही है ऐसे तमाम उदाहरण मिल जाएंगे लेकिन अपर्णा यादव का समाजवादी पार्टी में जाना मुलायम परिवार के अंदर चल रही कलह का सार्वजनिक होना है 

-सौम्य से नजर आने वाले अखिलेश यादव के अंदर कहीं ना कहीं एक तानाशाह है और  उसी तानाशाही के खिलाफ मुलायम की छोटी बहु अपर्णा यादव ने बगावत कर दी है... आपको अखिलेश की तानाशाही का सेम पैटर्न नजर आएगा.... पिता को पार्टी से बाहर निकालना... चाचा को दर बदर करना और फिर अपने छोटे भाई और उनकी पत्नी के अधिकारों को भी हड़प जाना... ये अखिलेश के तानाशाही चरित्र  को सत्यापित करता है 

-ये कहानी शुरू होती है 1980 के दशक से जब साधना गुप्ता से मुलायम सिंह यादव के रिश्ते स्थापित हो गए थे लेकिन साल 2007 में ये रिश्ते सार्वजनिक होने लगे और लोगों को मुलायम सिंह यादव की दूसरी शादी की बात लोगों को पता चली 

-मुलायम सिंह यादव की पहली पत्नी का नाम मालती यादव था... अखिलेश यादव मालती यादव के ही पुत्र हैं... अखिलेश के जन्म के बाद से ही मालती यादव बीमार रहने लगी थीं... और मुलायम सिंह धीरे धीरे साधना गुप्ता की तरफ आकर्षित होते चले गए... 

-अखिलेश किशोरावस्था से ही इतने ज्यादा महात्वाकांक्षी थे कि उन्होंने खुद को यादव परिवार की राजनीतिक विरासत का एक मात्र  उत्तराधिकारी माना ! मुलायम सिंह यादव... साधना यादव को अपने घर में एंट्री देना चाहते थे लेकिन अखिलेश ने बगावत कर दी । आखिरकार 2007 के आसपास अमर सिंह ने मध्यस्थता करके परिवार के बीच सुलह करवाई थी 

-अमर सिंह ने जो सुलह करवाई उसके मुताबिक साधना गुप्ता को परिवार में एंट्री तो मिलेगी लेकिन उनके बेटे प्रतीक यादव कभी राजनीति नहीं करेंगे और कभी चुनाव भी नहीं लड़ेंगे यही शर्त बाद में अपर्णा यादव पर भी लागू हो गई 

-लेकिन अपर्णा यादव की राजनीतिक महात्वाकांक्षा थी और 2017 में उनकी जिद के चलते नेता जी के दखल के बाद अपर्णा ने लखनऊ कैंट से सपा के टिकट पर चुनाव लड़ा... मुलायम सिंह यादव ने अपर्णा यादव के पक्ष में प्रचार भी किया था... लेकिन अपर्णा यादव चुनाव हार गईं 

-दरअसल अखिलेश ने बहुत ही चालाकी से अपर्णा यादव को एक ऐसी सीट दी थी जो कास्ट कॉम्बिनेशन के हिसाब से बीजेपी के पक्ष में रहती है... बाद में अपर्णा यादव को ये अहसास भी हुआ कि जेठ जी और जेठानी जी ने उनके साथ भितरघात कर दिया है 

-इस बार भी अपर्णा यादव टिकट मांग रही थीं... लेकिन अखिलेश पहले ही ये कह चुके थे कि इस बार परिवार से किसी को टिकट नहीं दिया जाएग... मुलायम सिंह ने अखिलेश से कहा कि टिकट दे दो लेकिन जब अखिलेश नहीं माने तो  अपर्णा ने बीजेपी का दामन थाम लिया 



-शिवपाल सिंह यादव ने भी अपर्णा के लिए मुलायम से बात की थी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला... कहा तो ये भी जा रहा है कि शिवपाल भी बीजेपी के संपर्क में हैं 

-कुल मिलाकर स्वामी प्रसाद मौर्य एंड कंपनी को सपा में शामिल करवाकर अखिलेश यादव काफी इतरा रहे थे लेकिन  उधार के सिंदूर से मांग भरने की उनकी प्लानिंग पर पानी बीजेपी ने फेर दिया । फिलहाल अखिलेश एंड कंपनी की बॉडी लैंग्वेज पहले से काफी हतोत्साहित नजर आ रही है... बीजेपी ने धीरे धीरे अपने पत्ते खोलने शुरू किए हैं... आगे आगे देखिए होता है क्या ? 

धन्यवाद
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