आपदाओं से जूझते झेलते हैं किसान तब जाकर कहीं मिलता है भोजन

आपदाओं से जूझते झेलते हैं किसान तब मयस्सर होता है भोजन
पेट भरने के लिए अन्नदाता युक्ति जुगाड से कर रहे खेती किसानी
दैवीय आपदा , प्राकृतिक आपदा , मौसम की मार के साथ ही सरकारी आपदाओं के हुए हैं शिकार ,
दोहरीघाट , मऊ
सरकारी उपेक्षाओं के चलते इन दिनों खेती , किसानी  युक्ति जुगाड विधि पे आधारित हो गई है जबकि सरकार जय जवान जय किसान का नारा देकर भी उपेक्षित रवैया अपनाती आ रही । राजस्व विभाग की बड़ी जिम्मेदारी बनती है । देश की सत्तर प्रतिशत आबादी का जन जीवन ही खेती किसानी पर निर्भर है अन्न बाग बगीचे फल फ्रूट आयुर्वेदिक जड़ी बूटियां बागवानी आदि जीवन आक्सीजन सम्पूर्ण मानव जीवन ही नही जल थल नभ सभी प्राकृतिक प्रकृति इसी पे आधारित है । बावजूद इसके आज की सरकारों व सरकारी अमले गंभीर नहीं दिखते राजस्व विभाग नीचे से उपर तक भ्रष्टाचार  की आकंठा में डूबा नजर आता है लेखपाल कानगो तहसीलदार आदि जिम्मेदारियों से कतरा रहे। खेतों के मेड़, सिंचाई नाली चकमार्ग आदि कहीं नही नजर आ रहे अधिकतर जोत जा चुके हैं आज सबसे बड़ा सवाल यह है अन्न पैदावार भंडारण उपज की यही बना हुआ है । राजस्व व चकबंदी विभाग उपेक्षित है कानूनी प्रक्रिया विवाद में फसाये हुए जिम्मेदार शान्त होकर उलझा दिया है । बेचारा बने किसान छोटे मझले बड़े भी जद में होने के बावजूद जुगाड युक्ति से खेतों में फसल की सिंचाई रेडिमेट प्लास्टिक पाइपों से करने को विवस हैं । आजादी के 75 साल बाद भी खेती किसानी अन्न पैदावार भंडार आदि समस्याओं का हल नहीं किया गया ।

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