श्रद्धा का महा सावन, सावन में शिव का पूजन अर्चना होता है फलदाई

श्रद्धा का महा सावन सावन में शिव का पुजन अर्चना फलदायी ।

बख्शा जौनपुर से अशोक शुक्ल जी के कलम से बहुत ही भाव पूर्ण लेख 

जय प्रकाश मिश्रा जौनपुर 

भगवान शिव के प्रिय दिनों में महा शिवरात्रि तथा सावन माह भक्तों के लिए अतिप्रिय है भक्तों का मानना है कि इस दिनो में भगवान शिव की पूजा अधिक सार्थक एवं फल कि प्राप्ति होती है भगवान शंकर यू तो अराधना से प्रशंन्न होते हैं लेकिन सावन मास में जलाभिषेक, रुद्राभिषेक का बड़ा ही महत्व है बेद मंत्रों के साथ भगवान शिव को जलधारा अर्पित करना साधक के अध्यात्मिक जीवन के लिए महा औषधि के समान है सावन मास में शिव भक्ति का पुराणों में भी उल्लेख मिलता है पैराणिक कथाओं में वर्णन आता है इसी मास में समुद्र मंथन किया गया था समुद्र मंथन के बाद जो बिष निकाला भगवान शंकर ने कंठ में समाहित कर सृष्टि के रक्षा की लेकिन बिषपान से महादेव का कंठ नील वर्ण हो गया बिष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी देवताओं ने भगवान शंकर को जल अर्पित किया इसलिए शिव लिंग पर जलाभिषेक करने का विषेश महत्त्व है साधना के समय चंचल और अति चलायमान मन की एकाग्रता एक अहम कड़ी  है जिसके बिना परम तत्व की प्राप्ति असंभव है साधक कि साधना जब शुरू होती है तन मन एक बिकराल बांधा बनकर खड़ा हो जाता है उसे नियंत्रण करना सहज नहीं होता है चंद्रमा का मन संकेतक है और वह भगवान शिव के मस्तिष्क पर विराजमान हैं चंद्रमा मनसो जाता: अर्थात चंद्रमा मन का मालिक है भगवान शंकर की कृपा से भक्त त्रिगुणातीत संत,रज तम गुण भाव को प्राप्त करता है और उसके जन्म मरण से मुक्ति का आधार बनता है और शारीरिक रूप से विकार रहित स्वरूप प्रदान करतीं हैं यह स्वरूप निर्विकार होता है जो परम ब्रह्म से साक्षात्कार का रास्ता तय करता है।

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