जोधा अकबर की कहानी निकली झूठी,सैकड़ो सालों से प्रसारित झूठ का खंडन हुआ

"जोधा अकबर" की कहानी झूठी निकली, सैकड़ो सालों से प्रचारित झूठ का खण्डन हुआ।
 अकबर की शादी "हरकू बाई" से हुई थी,
 जो मान सिंह की दासी थी - जयपुर के रिकॉर्ड।
पुरातत्व विभाग 
भी यही मानता है कि जोधा एक झूठ है, जिस झूठ को वामपन्थी इतिहासकारों ने और फिल्मी भाँड़ों ने रचा है।
यह ऐतिहासिक षड़यन्त्र है। 
आइये,
 एक और ऐतिहासिक षड़यन्त्र से आप सभी को अवगत कराते हैं। 
अब कृपया ध्यानपूर्वक पूरा पढ़ें। 

जब भी कोई राजपूत किसी मुगल की गद्दारी की बात करता है तो कुछ मुगल प्रेमियों द्वारा उसे जोधाबाई का नाम लेकर चुप कराने की कोशिश की जाती है। बताया जाता है कि कैसे जोधा ने अकबर से विवाह किया।
 परन्तु अकबर के काल के किसी भी इतिहासकार ने जोधा और अकबर की प्रेमकथा का कोई वर्णन नहीं किया !
सभी इतिहासकारों ने अकबर की केवल 5 बेगमें बताई हैं।

1. सलीमा सुल्तान।

2. मरियम उद ज़मानी।

3. रज़िया बेगम।

4. कासिम बानू बेगम।

5. बीबी दौलत शाद।

अकबर ने स्वयं अपनी आत्मकथा अकबरनामा में भी, 
किसी रानी से विवाह का कोई उल्लेख नहीं किया। परन्तु राजपूतों को नीचा दिखाने के लिए कुछ इतिहासकारों ने अकबर की मृ'त्यु के लगभग 300 साल बाद 18 वीं सदी में “मरियम उद ज़मानी”, को जोधा बाई बताकर एक झूठी अफवाह फैलाई और इसी अफवाह के आधार पर अकबर और जोधा की प्रेमकथा के झूठे किस्से शुरू किये गये, 
जबकि अकबरनामा और जहाँगीरनामा के अनुसार ऐसा कुछ नहीं था ! 
18 वीं सदी में मरियम को हरखा बाई का नाम देकर, उसको मान सिंह की बेटी होने का झूठा प्रचार शुरू किया गया। फिर 18 वीं सदी के अन्त में एक ब्रिटिश लेखक जेम्स टॉड ने अपनी किताब “एनैलिसिस एंड एंटीक्स ऑफ राजस्थान” में मरियम से हरखा बाई बनी, 
इसी रानी को जोधा बाई बताना शुरू कर दिया और इस तरह यह झूठ आगे जाकर इतना प्रबल हो गया कि आज यही झूठ भारत के स्कूलों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बन गया है 
और जन जन की जुबान पर यह झूठ, सत्य की तरह बैठ गया है तथा इसी झूठ का सहारा लेकर राजपूतों को नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है ! 
जब भी मैं जोधाबाई और अकबर के विवाह के प्रसङ्ग को सुनता या देखग हूँ, 
तो मन में कुछ अनुत्तरित प्रश्न कौंधने लगते हैं ! 

आन, बान और शान के लिए मर मिटने वाले, शूरवीरता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध भारतीय क्षत्रिय अपनी अस्मिता से क्या कभी इस तरह का समझौता कर सकते हैं ?
हजारों की संख्या में एक साथ अग्निकुण्ड में जौ'हर करने वाली क्षत्राणियों में से कोई स्वेच्छा से किसी मुगल से विवाह कर सकती है ? 
जोधा और अकबर की प्रेमकथा पर केन्द्रित अनेक फिल्में और टीवी धारावाहिक, 
मेरे मन की टीस को और अधिक बढ़ा देते हैं ! 

अब जब यह पीड़ा 
असहनीय हो गई तो एक दिन इस प्रसङ्ग में इतिहास जानने की जिज्ञासा हुई, तो पास के पुस्तकालय से अकबर के दरबारी "अबुल फजल" के द्वारा लिखित  "अकबरनामा" निकाल कर पढ़ने के लिए ले आया, उत्सुकतावश उसे एक ही बैठक में पूरा पढ़ गया । पूरी किताब पढ़ने के बाद घोर आश्चर्य तब हुआ जब पूरी पुस्तक में जोधाबाई का कहीं कोई उल्लेख ही नहीं मिला !
मेरी आश्चर्यमिश्रित जिज्ञासा को भाँपते हुए मेरे फ्रेंड ने एक अन्य ऐतिहासिक ग्रन्थ  "तुजुक-ए-जहाँगीरी" को, जो जहाँगीर की आत्मकथा है,
 मुझे दिया ! इसमें भी आश्चर्यजनक रूप से जहाँगीर ने अपनी माँ जोधाबाई का एक बार भी उल्लेख नहीं किया है ! 
हाँ, कुछ स्थानों पर हीर कुवँर और हरका बाई का उल्लेख अवश्य था। 
अब जोधाबाई के बारे में सभी ऐतिहासिक दावे झूठे लग रहे थे। कुछ और पुस्तकों और इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के पश्चात्  सच्चाई सामने आई कि “जोधा बाई” का पूरे इतिहास में कहीं कोई उल्लेख या नाम नहीं है ! 
इस खोजबीन में एक नई बात सामने आई, 
जो बहुत चौकानें वाली है !
 इतिहास में दर्ज कुछ तथ्यों के आधार पर पता चला कि आमेर के राजा भारमल को दहेज में "रुकमा" नाम की एक पर्सियन दासी भेंट की गई थी, 
जिसकी एक छोटी पुत्री भी थी। 
रुकमा की बेटी 
होने के कारण उस लड़की को "रुकमा-बिट्टी" के नाम से बुलाया जाता था। आमेर की महारानी ने "रुकमा बिट्टी" को "हीर कुवँर" नाम दिया। 
हीर कुँवर का लालन पालन राजपूताना में हुआ, इसलिए वह राजपूतों के रीति-रिवाजों से भली भाँति परिचित थी।
राजा भारमल उसे कभी हीर कुवँरनी तो कभी हरका कह कर बुलाते थे।
 राजा भारमल ने अकबर को बेवकूफ बनाकर अपनी पर्सियन दासी रुकमा की पुत्री हीर कुवँर का विवाह अकबर से करा दिया, 
जिसे बाद में अकबर ने मरियम-उज-जमानी नाम दिया ! 
चूँकि राजा भारमल ने उसका कन्यादान किया था, इसलिये ऐतिहासिक ग्रन्थों में हीर कुवँरनी को राजा भारमल की पुत्री बताया गया,
 जबकि वास्तव में वह कच्छवाह की राजकुमारी नहीं, बल्कि दासी-पुत्री थी !

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